Tuesday, June 25, 2019

जब निक्सन ने इंदिरा गाँधी को कराया 45 मिनट इंतज़ार: विवेचना

महाराज कृष्ण रस्गोत्रा 94 साल के हैं. लेकिन उनकी याददाश्त अभी भी हाथी की तरह है. पिछले 75 साल की सभी घटनाएं उनके अंतरमन में इस तरह गुथी हुई हैं, जैसे वो अभी कल की बात हो.
कुछ मामलों में रस्गोत्रा भाग्यशाली भी रहे हैं, वर्ना किसको इतनी नज़दीक से जवाहरलाल नेहरू, जॉन एफ़ केनेडी, इंदिरा गाँधी और मारग्रेट थैचर जैसी हस्तियों को देखने का मौका मिला है.
1949 में भारतीय विदेश सेवा में आए रस्गोत्रा की शुरुआती पोस्टिंग थी 'असिस्टेंट चीफ़ ऑफ़ प्रोटोकॉल' के तौर पर.
उस ज़माने में कनाडा के एक मंत्री क्लेरेंस रो भारत आए थे. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उन्हें अपने साथ पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का शास्त्रीय गायन सुनवाने आकाशवाणी के सभागार ले गए.
महाराज रस्गोत्रा बताते हैं, 'पंडितजी ने ही सलाह दी थी कि इनको भारतीय शास्त्रीय संगीत से कुछ रूबरू कराया जाए. उस ज़माने में ऑल इंडिया रेडियो में एक छोटा सा हॉल हुआ करता था. वो उन्हें वहाँ ले गए. पंडितजी और वो कनाडियन मंत्री पहली कतार में बैठे थे. मैं उनके ठीक पीछे बैठा हुआ था.'
'ओंकारजी ने गाना शुरू किया. पंडितजी उनकी समझा रहे थे कि ये आलाप है. इसका क्या मतलब होता है? ये राग किस समय का है. इसका नाम क्या है, वगैरह, वगैरह. ठाकुरजी अपने आलाप में लगे हुए थे. नेहरू चूंकि पहली कतार में बैठे हुए थे, इनकी आवाज़ ठाकुरजी तक पहुंची और वो 'डिस्टर्ब' हो गए. उन्होंने साजिंदो को अचानक इशारा किया और गाना बंद कर दिया.'
'पंडितजी ने ओंकारनाथ ठाकुर से पूछा, 'पंडितजी आपने गाना बंद क्यों कर दिया?' उन्होंने बहुत तपाक से मुस्करा कर कहा, 'पहले आप अपनी बातचीत ख़त्म कर लीजिए, तो मैं गाऊँ.' पंडितजी का 'रिएक्शन' देखने लायक था. लेकिन उन्होंने कहा 'पंडितजी माफ़ कीजिएगा. मैं इन साहब को बता रहा था कि आप क्या गा रहे हैं. अब मैं चुप रहूंगा. आप गाना शुरू कीजिए.'
कवि हरिवंशराय बच्चन की रस्गोत्रा से गहरी दोस्ती थी.
1955 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गर्मियों की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चन को सपरिवार काठमांडु आमंत्रित किया जहाँ उन दिनों वो भारतीय दूतावास में सेकेंड सेक्रेट्री के तौर पर तैनात थे.
इस यात्रा के दौरान हरिवंशराय बच्चन ने कई कवि सम्मेलनों में भाग लिया.
रस्गोत्रा याद करते हैं, ' मेरे घर में उनकी रात- रात भर बैठकें होती थीं. कभी कभी कविताएं सुनाते सुनाते रात के एक - दो बज जाया करते थे. एक बार उन्होंने अपनी 'निशा निमंत्रण' का पाठ रात साढ़े नौ बजे शुरू किया. उसमें करीब सौ कविताएं हैं. सभी उन्होंने पढ़ीं. अमिताभ और अजिताभ तो छोटे छोटे बच्चे थे. इनको हम खिलाया और घुमाया करते थे. तेजी तो कमाल की औरत थी. क्या उनकी आवाज़ थी. बच्चनजी की रचनाएं वो अपनी आवाज़ में सुनाया करती थीं.'
उसी बैठक में रस्गोत्रा उस दृश्य के गवाह बने जिसकी आज के युग में कल्पना भी नहीं की जा सकती.
हुआ ये कि जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हेरल्ड मैकमिलन अपने भाषण में सोवियत संघ पर कटाक्ष कर रहे थे तो ख्रुश्चेव ने अपना जूता उतार कर मेज़ पर तीन या चार बार बजाया.
महाराज कृष्ण रस्गोत्रा बताते हैं, "एक दिन मैकमिलन को बोलना था. वो नाटकीयता में यकीन रखते थे. ब्रिटिश संसद में भी मैंने उनको देखा हुआ था. अगने दिन वही थियेटर उस शख़्स ने संयुक्त राष्ट्र में भी किया. बात बात पर वो मास्को और ख़्रुश्चेव पर ताना कस रहे थे और उन्हें हिदायत दे रहे थे कि बर्लिन में कोई ग़लत बात मत करना. उसके नतीजे बहुत ख़राब निकलेंगे. ख़्रुश्चेव बेचारा बैठा सुन रहा था. उसको गुस्सा आ गय़ा. उसने अपना जूता निकाल कर ठक, ठक, ठक अपनी मेज़ पर मारा. वो कम्यूनिस्ट कार्यकर्ता था. अपने काम की वजह से धीरे धीरे लीडरशिप के रोल में आया था. उसने अपना गुस्सा दिखा दिया, लेकिन वहाँ मौजूद सभी लोग ये देख कर हक्का-बक्का रह गए."

Monday, June 10, 2019

رابعة واللؤلؤة والقيادة العامة اعتصامات فُضّت بعنف

مع انطلاق ربيع الثورات العربية في الأشهر الأولى من عام 2010 والذي شمل البحرين واليمن وسوريا ومصر وتونس وليبيا وأخيراً الجزائر والسودان، لجأ المتظاهرون إلى أساليب وأشكال مختلفة من الاحتجاجات والأنشطة لتحقيق مطالبهم. كان على رأس تلك الأساليب اللجوء إلى تكتيك الاعتصام الدائم في الساحات العامة أو المركزية والتجمع بأعداد كبيرة مع وجود تغطية إعلامية دائمة لما يجري على أمل أن يجبر ذلك السلطات على التردد في فض الاعتصامات.
بعض الاعتصامات لم تدم سوى ساعات إذ لم تتهاون معها السلطات وفضتها بالقوة موقعة الكثير من الضحايا وبعضها الآخر استمر لأسابيع لكنها انتهت بكلفة عالية من حيث عدد الضحايا تلتها تغيرات سياسية واسعة.
تم فض إعتصام دوار اللؤلؤة في العاصمة البحرينية المنامة بالقوة في 16 فبراير/شباط 2011. والأسم الرسمي للدوار كان دوار مجلس التعاون الخليجي. وقتل أربعة اشخاص في عملية فض الاعتصام وأصيب أكثر من مئتي شخص.
وانطلقت الاحتجاجات في البحرين في 14 فبراير/ شباط 2011 بزعامة قيادات من الغالبية الشيعية للمطالبة بالاصلاح السياسي، وأقام آلاف المتظاهرين الخيم والمتاريس في الدوار مع انطلاق موجة الاحتجاجات.
وأقام المتظاهرون ما يشبه مخيما دائما في الدوار ومنعوا حركة السير فيه استعداداً لاعتصام طويل الأمد فيما يبدو.
وكان ثلاثة أشخاص بينهم مدنيان قد قتلوا كما أصيب حوالي 200 آخرين قبل يوم في أعمال عنف بين المتظاهرين وقوات الامن. وتزامن ذلك مع الإعلان عن فرض حالة الطوارئ لمدة ثلاثة أشهر ووصول قوات سعودية وإماراتية إلى هناك.
وبعد فض الاعتصام جرفت السلطات النصب الذي كان موجودا في الدوار وأزالته بشكل نهائي.
واقيم في الدوار عام 1881 نصب عبارة عن ستة أعمدة تمثل دول مجلس التعاون الخليجي الست وتعتليها لؤلؤة ترمز للبحرين التي ارتبطت بالبحر واستخراج اللؤلو وتجارته.
في 3 يوليو/تموز قام الجيش المصري بعزل محمد مرسي، أول رئيس مصري مدني منتخب، وهو قيادي بجماعة الإخوان المسلمين، في أعقاب احتجاجات شعبية ضد حكم الجماعة. وطالب المتظاهرون بإجراء إنتخابات رئاسية مبكرة.
وعلى مدار الشهرين التاليين نظم مؤيدو الإخوان المسلمين احتجاجات ومظاهرات تندد باستيلاء الجيش على السلطة والمطالبة بعودة مرسي إلى الحكم.
في 14 أغسطس/آب 2013 فضت قوات الأمن الاعتصام الكبير لمؤيدي مرسي في منطقة رابعة العدوية بحي مدينة نصر شرقي القاهرة.
قوات الأمن تفض اعتصامي انصار مرسي
وقد استخدم أفراد الشرطة والجيش خلال العملية ناقلات الجنود المدرعة، والجرافات، وقوات برية وقناصة في بالهجوم على موقع الاعتصام حيث كان متظاهرون، وبينهم سيدات وأطفال، قد خيموا لما يزيد عن 45 يوماً.
قتل في العملية التي بدأت في وقت مبكر من الصباح وانتهت مساءً ما لا يقل عن 817 شخصاً حسب تقرير لمنظمة هيومان رايتس ووتش.
وقالت الحكومة المصرية إن بعض المتظاهرين استخدموا السلاح ضد قوات الأمن، مما أدى الى مقتل عدد من أفرادها.
ومثّل فض الاعتصام بداية مواجهة بين الجيش وجماعة الاخوان المسلمين فقد تم حظر الجماعة وتصنيفها في خانة المنظمات الإرهابية وتم الزج بآلاف من أنصار واعضاء الجماعة في السجن.
في 3 يونيو/ حزيران 2019 أقتحمت قوات الأمن السودانية ساحة الاعتصام التي أقامها المحتجون أمام مقر القيادة العامة للجيش منذ عدة أسابيع و قتل خلال العملية نحو مئة شخص وأصيب المئات وجرت اعتقالات واسعة وسط تنديد دولي.
وكانت المفاوضات بين قوى المعارضة والمجلس العسكري الانتقالي قد وصلت إلى طريق مسدود بعد أسابيع من اللقاءات والمباحثات التي لم تثمر عن نتيجة، إذ بقيت نقطتا الخلاف حول رئاسة المجلس السيادي الذي سيحكم السودان خلال المرحلة الانتقالية التي تم الاتفاق على أن تقتصر على ثلاث سنوات بين الطرفين وكذلك حول تركيبة المجلس.
وألغى المجلس العسكري كل الاتفاقات السابقة مع تحالف المعارضة ودعا إلى إجراء انتخابات مبكرة خلال تسعة أشهر عقب فض الاعتصام.
أما تحالف قوى المعارضة المتمثل بقوى الحرية والتغيير فأعلن عن وقف جميع الاتصالات مع المجلس، والدعوة إلى إضراب عام وعصيان مدني.
مظاهرات السودان: من هو حميدتي؟