نفت الحكومة الأردنية اليوم السبت، أنباء متداولة على مواقع
التواصل الاجتماعي تفيد بهروب المستثمر الأردني توفيق فاخوري بـ 81 مليون
دولار إلى مدينة نيويورك في الولايات المتحدة.
मेरठ से करीब 20 किलोमीटर दूर किठौर के माछरा गांव में बुधवार को अचानक आसमान से गोले गिरने से अफरातफरी का माहौल बन गया.
जनसत्ता
में छपी ख़बर के मुताबिक थाना किठौर ने ये जानकारी पुलिस नियंत्रण कक्ष को दी, इसके बाद फॉरेंसिक टीम मौके पर पहुँची और उन गोलों को कब्जे में लिया.
पुलिस क्षेत्राधिकारी चक्रपाणि त्रिपाठी ने बताया कि इन दिनों
हिंडन एयरबेस पर आठ अक्टूबर को वायुसेना दिवस पर होने वाले शक्ति प्रदर्शन
के लिए अभ्यास किया जा रहा है. माना जा रहा है कि यह एयरक्राफ्ट इसी अभ्यास
का ही हिस्सा रहा होगा.
पुलिस अधिकारी ने कहा कि पूरे मामले में स्थिति स्पष्ट होने के लिए फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है.
कुछ ग्रामीणों का कहना है कि इन गोलों की आवाज़ काफ़ी तेज़ थी और एक ग्रामीण के छप्पर में आग भी लगी. त्रिपुरा में स्वतंत्र देश की मांग कर रहे दो अलगाववादी समूहों पर सरकार ने नए प्रतिबंध लगा दिए हैं.
गृह
मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा और ऑल
त्रिपुरा टाइगर फोर्स पर नए प्रतिबंध लगाने की बात कही है.
मंत्रालय
का कहना है कि ये समूह सरकार के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों के बीच डर और हिंसा फैला रहे हैं.
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय दौरे पर भारत पहुंच चुके हैं. गुरुवार को दिल्ली के एयरपोर्ट पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उनका
स्वागत किया.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वो शुक्रवार
को 19वीं द्विपक्षीय वार्षिक शिखर बैठक करेंगे, जिसमें 5 अरब डॉलर के
बहुचर्चित S-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम पर सौदा संभव है.
हितों के टकराव के आरोपों की जांच में घिरीं आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध
निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंदा कोचर ने गुरुवार को अपने पद से
इस्तीफा से दिया है.
उनका कार्यकाल छह महीने और बचा था. कोचर और उनके
परिवार के सदस्यों पर वीडियोकॉन समूह को कथित रूप से परस्पर लाभ पहुंचाने के आधार पर बैंक से लोन मुहैया कराने का आरोप हैं.
कोचर के इस्तीफे के बाद संदीप बख्शी बैंक के नए प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी होंगे.
अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के लिए नामित जज के ख़िलाफ़ यौन हमले के आरोपों पर
आई एफबीआई की रिपोर्ट को लेकर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सीनेटर आमने-सामने
हैं.
रिपब्लिकन सीनेटर जेफ़ फ़्लेक और सुज़न कॉलिन्स ने कहा कि
रिपोर्ट से उनकी चिंता कम हुई है. जबकि कुछ डेमोक्रेट सीनेटरों ने एफबीआई
की रिपोर्ट की निंदा की है.
उनमें से एक डेमोक्रेट ने आरोप लगाया कि व्हाइट हाउस ने एफबीआई के हाथ बांध दिए हैं, जिसकी वजह से वह अपना काम ठीक
से नहीं कर पा रही.
भारत के पहले समाचार पत्र की स्थापना
साल 1780 में हुई थी. उस समाचार पत्र ने उस वक़्त अंग्रेज़ साम्राज्य को
आईना दिखाने के काम किया था. उसने हुकूमत को प्रेस की ताक़त का एहसास
करवाया था.
बात हो रही है 'बंगाल गज़ट' की जिसे भारत से प्रकाशित
होने वाले पहले अख़बार का दर्ज़ा प्राप्त है. बंगाल गज़ट की शुरुआत जेम्स
ऑगस्टस हिक्की ने की थी. उस वक़्त इस अखबार ने अपनी ख़बरों से अंग्रेज़ हुकूमत के शीर्ष पर मौजूद कई ताक़तवर लोगों को हिला कर रख दिया था.
अपनी ख़बरों के दम पर बंगाल गज़ट ने कई लोगों के भ्रष्टाचार, घूसकांड और मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर किया था.
अपने इन्हीं दावों में से एक दावे में बंगाल गज़ट ने उस वक़्त भारत के
गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स पर आरोप लगाया था कि उन्होंने भारतीय सुप्रीम
कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को घूस दी है.
इस अख़बार में भारत के ग़रीबों का ज़िक्र किया जाता था. उन सैनिकों की
ख़बरें प्रकाशित की जाती थीं जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से युद्ध
में लड़ते हुए मारे गए.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के लगभग समूचे हिस्से पर अपनी सत्ता फैला ली थी, इसके साथ ही कंपनी के सैनिक भी सभी जगह तैनात रहते थे.
हालांकि
साल 1857 की क्रांति ने अंग्रेज़ों को चौकन्ना ज़रूर कर दिया था. ऐसा भी कहा जाता है कि 1857 की क्रांति के लिए बंगाल गज़ट ने ही भारतीय सैनिकों को
विद्रोह के लिए तैयार किया था और हेस्टिंग्स के ख़िलाफ़ जाने के लिए उनके
भीतर ज्वाला भरी थी.
बंगाल गज़ट अपनी प्रभावी पत्रकारिता के ज़रिए
अंग्रेज सरकार की आंखों में चुभने लगा था, ख़ासतौर पर वॉरेन हेस्टिंग्स
इससे सबसे अधिक प्रभावित थे.
इसका नतीज़ा यह हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल गज़ट के मुकाबले में
एक दूसरे प्रतिस्पर्धी अख़बार पर पैसा लगाना शुरू कर दिया. हालांकि वह
बंगाल गज़ट की आवाज़ पर रोक नहीं लगा सके.
आखिरकार, जब अखबार में एक
अज्ञात लेखक ने यह लिख दिया कि 'सरकार हमारे भले के बारे में नहीं सोच सकती
तो हम भी सरकार के लिए काम करने के लिए बाध्य नहीं हैं', तब ईस्ट इंडिया
कंपनी ने इस अख़बार को बंद करने का फ़ैसला सुना दिया.
दूसरी तरफ हेस्टिंग्स ने हिक्की पर परिवाद का मुकदमा दायर कर दिया. हिक्की को दोषी पाया गया और उन्हें जेल जाना पड़ा.
लेकन जेल जाने के बाद भी हिक्की के हौसले पस्त नहीं हुए. वो जेल के भीतर से ही 9 महीनों तक अख़बार निकालते रहे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को एक विशेष आदेश के ज़रिए उनकी प्रिंटिंग प्रेस को ही
सील करवाना पड़ा. इस तरह भारत का पहला समाचार पत्र बंद हो गया.
हला वार्का टावर अफ्रीकी देश इथियोपिया में लगाया गया था. जब वहां कोहरे का सीज़न आया, तो इस मशीन से ख़ूब पानी इकट्ठा किया गया.
लेकिन जब बारिश या कोहरा नहीं था, तब भी हवा में नमी से पानी इकट्ठा हो रहा था.
इस
टावर को स्थानीय लोगों ने बांस और दूसरी चीज़ों से मिलाकर बनाया. इसमें ताड़ की पत्तियां भी इस्तेमाल की गई थीं. अब हैती और टोगो में भी ये मशीन
लगाई जा रही है. विटोरी कहते हैं कि वार्का टावर में आस-पास मिलने वाली
चीज़ों से ही पानी को जमा किया जाता है.
रोलां वाल्ग्रीन कहते हैं कि
ऐसी बुनियादी तकनीक उन्हीं जगहों पर कारगर होगी, जहां पर हवा में नमी ख़ूब
होगी. लेकिन, दुनिया भर में पानी से महरूम 2.1 अरब लोगों तक साफ़ पानी
पहुंचाना है, तो वार्का टावर इसमें ज़्यादा मददगार नहीं होगा.
वहीं
विटोरी कहते हैं कि एक वार्का टावर से 50 लोगों को पानी मुहैया कराया जा
सकता है. इसे तैयार करने में क़रीब 3 हज़ार डॉलर का ख़र्च आता है. बड़ा
यानी 25 मीटर लंबा टावर बनाने का ख़र्च क़रीब 30 हज़ार डॉलर बैठेगा, जो 250
लोगों को पानी की सप्लाई कर सकता है. जब हवा में नमी नहीं होती, तो इस
टावर के नीचे स्थित टैंक में पानी नहीं जमा होता.
इसके मुक़ाबले केमिकल स्पंज वाले डेसिकेंट और रेफ्रिजरेटर की तरह काम
करने वाली मशीनों से लगातार पानी जमा होता रहता है. हां, इन्हें चलाने के
लिए बिजली की ज़रूरत पड़ेगी.
वैसे तकनीक की दुनिया लगातार बदलती रहती है. कौन जाने, आगे चलकर कोई नई
तकनीक ईजाद की जाए. ऐसी मशीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्री एक्सप्राइज़
इनोवेशन मुक़ाबले ने 17.5 लाख डॉलर का इनाम भी रखा है.
लोगों के ज़हन में ये सवाल भी है कि कहीं हवा से पानी सोखने से धरती के वाटर साइकिल पर तो असर नहीं पड़ेगा?
कहीं बादल बनने की प्रक्रिया पर तो असर नहीं होगा?
प्रोफ़ेसर
कोडी फ्रीसेन इन सवालों को हंसी में उड़ा देते हैं. वो कहते हैं कि अगर
धरती पर हर इंसान के पास हवा से पानी निकालने वाली मशीन हो, तो भी हम
ट्रैफिक के धुएं में मौजूद पूरा पानी नहीं निकाल सकेंगे.
भले ही हवा
से पानी सोखने के ये नुस्खे अभी अजीब लग रहे हों, मगर जिस तरह से ज़मीन के
भीतर मौजूद पानी का स्तर घट रहा है, उस स्थितिमें हमें बहुत जल्द पीने के
पानी के नए स्रोत की ज़रूरत होगी. ऐसे में डब्ल्यू एफ ए जैसी तकनीक में
उम्मीद नज़र आती है.
हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती,
लेकिन वो क्या वजह रही होगी कि प्राचीन काल में सोने और चांदी को मुद्रा के
रूप में चुना गया होगा?
ये महंगे ज़रूर हैं लेकिन बहुत सारी चीज़ें
इनसे भी महंगी हैं. फिर इन्हें ही संपन्नता और उत्कृष्टता मापने का पैमाना
क्यों माना गया?
बीबीसी इन सवालों के जवाब तलाशते हुए यूनिवर्सिटी
कॉलेज लंदन के आंद्रिया सेला के पास पहुंचा. आंद्रिया इनऑर्गेनिक
केमेस्ट्री के प्रोफ़ेसर हैं.
उनके हाथ में एक पीरियॉडिक टेबल था. आंद्रिया सबसे अंत से शुरू करते हैं.किन एक परेशानी भी है कि ये नोबल गैस समूह के होते हैं. ये गैस गंधहीन
और रंगहीन होती हैं, जिनकी रासायनिक प्रतिक्रिया की क्षमता कम होती है.
यही कारण है कि इन्हें मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाना आसान नहीं होता. क्योंकि इन्हें लेकर घूमना एक चुनौती होगा.
चूंकि ये रंगहीन होते हैं, इसलिए इसे पहचानना भी मुश्किल होता और ग़लती से इनका कंटेनर खुल जाए तो आपकी कमाई हवा हो जाती. इमेज कॉपीरइटGetty Imagesइस श्रेणी में मरकरी और ब्रोमीन तो हैं पर वे लिक्विड स्टेट में हैं और
ज़हरीले होते हैं. दरअसल सभी मेटलॉइड्स या तो बहुत मुलायम होते हैं या फिर
ज़हरीले.
पीरियॉडिक टेबल गैस, लिक्विड और ज़हरीले रासायनिक तत्वों के बिना कुछ ऐसा दिखेगा.
ऊपर के टेबल में सभी नॉन-मेटल तत्व भी ग़ायब हैं, जो गैस और लिक्विड
तत्व के आसपास थे. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन नॉन-मेटल को न तो फैलाया जा
सकता है और न ही सिक्के का रूप दिया जा सकता है.
ये दूसरे मेटल के मुक़ाबले मुलायम भी नहीं होते हैं, इसलिए ये मुद्रा बनने की दौड़ में पीछे रह गए.
सेला ने अब हमारा ध्यान पीरियोडिक टेबल की बाईं ओर खींचा. ये सभी रासायनिक तत्व ऑरेंज कलर के घेरे में थे.
ये
सभी मेटल हैं. इन्हें मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है पर
परेशानी यह है कि इनकी रासायनिक प्रतिक्रिया क्षमता बहुत ज़्यादा होती है.
लिथियम
जैसे मेटल इतने प्रतिक्रियाशील होते हैं कि जैसे ही ये हवा के संपर्क मे
आते हैं, आग लग जाती है. अन्य दूसरे खुरदरे और आसानी से नष्ट होने वाले
हैं.
इसलिए ये ऐसे नहीं हैं, जिसे आप अपनी जेबों में लेकर घूम सकें.
इसके आसपास के रासायनिक तत्व प्रतिक्रियाशील होने की वजह से इसे मुद्रा
बनाया जाना मुश्किल है. वहीं, एल्कलाइन यानी क्षारीय तत्व आसानी से कहीं भी
पाए जा सकते हैं.
अगर इसे मुद्रा बनाया जाए तो कोई भी इसे तैयार कर
सकता है. अब बात करें पीरियॉडिक टेबल के रेडियोएक्टिव तत्वों की तो इन्हें
रखने पर नुक़सान हो सकता है.
ऊपर की तस्वीर में बचे रासायनिक तत्वों की बात करें तो ये रखने के हिसाब
से सुरक्षित तो हैं लेकिन ये इतनी मात्रा में पाए जाते हैं कि इसका सिक्का
बनाना आसान हो जाएगा, जैसे कि लोहे के सिक्के.
मुद्रा के रूप में उस रासायनिक तत्व का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जो आसानी से नहीं मिलते हों.
अब अंत में पांच तत्व बचते हैं जो बहुत मुश्किल से मिलते हैं. सोना(Au), चांदी( ), प्लैटिनम(Pt), रोडियम(Rh) और पलेडियम(Pd).
ये
सभी तत्व क़ीमती होते हैं. इन सभी में रोडियम और प्लेडियम को मुद्रा के
रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन इनकी खोज उन्नीसवीं शताब्दी में की
गई थी, जिसकी वजह से प्राचीन काल में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया था.
तब
प्लैटिनम का इस्तेमाल किया जाता था पर लेकिन इसे गलाने में तापमान को 1768
डिग्री तक ले जाना होता है. इस वजह से मुद्रा की लड़ाई में सोने और चांदी
की जीत हुई.
चांदी का इस्तेमाल सिक्के के रूप में तो हुआ पर परेशानी यह थी कि ये हवा में मौजूद सल्फर से प्रतिक्रिया कर कुछ काली पड़ जाती है.
चांदी की तुलना में सोना आसानी से नहीं मिलता है और यह काला भी नहीं पड़ता.
सोना ऐसा तत्व है जो आर्द्र हवा में हरा नहीं होती है. सेला कहते हैं कि यही वजह है मुद्रा की दौड़ में सोना सबसे आगे और अव्वल रहा.
वो कहते हैं कि यही वजह है कि हज़ारों सालों के प्रयोग और कई सभ्यताओं ने सोने को मुद्रा के रूप में चुना.