Tuesday, September 18, 2018

建立全国碳市场亟需企业信息披露

巴黎协定两周年之际,中国宣布了万众瞩目的全国碳交易市场建设方案。即使初期仅纳入电力一个行业,据国家发改委副主任张勇介绍,覆盖30多亿吨碳排放的全国碳市场规模也将远超欧盟。开启全球规模最大的碳市场,是中国落实《巴黎协定》承诺的重要行动,自然为各方瞩目。

但任何市场化环境问题解决方案,都离不开信息的公开。北京大学环境经济学教授张世秋告诉公众环境研究中心( ),从经济学角度看碳排放权是虚拟资产,公开涉及碳排放权交易企业的有关排放、削减以及相关措施等信息,有助于界定和明晰产权,对交易过程进行有效监督,确保其公平、公正和无欺。如此,才能切实产生能够优化资源配置的碳价信息,达到建立碳排放权交易市场的真正目的。

此外,碳排放权涉及到公共利益,属于公共领域问题,理应具备信息公开的机制。

国内碳披露现状欠佳

令人担忧的是,全国碳市场即将启动,而2016年10月国务院公布的《“十三五”控制温室气体排放工作方案》中(在2020年前)“建立温室气体排放信息披露制度”的目标还没有得到落实。

2013年以来陆续启动的七省市碳排放权交易试点,均未推进重点排放单位的碳排放数据和配额分配情况向公众披露。试点运行期出现了价格波动性大、市场价格发现功能发挥受限等问题,碳价走势很难由市场形成预期,这很大程度上与市场缺乏透明度相关。

据 统计,七个试点碳市场的地方性法规或政府规章中关于信息公开的部分,均未涉及交易者的碳排放数据、政府配额分配情况、或是核查机构核查信息的公开。不同试点碳市场的信息公开规则也不一样,大多数仅要求公开控制排放单位的清单以及履约/违约单位清单。

而一些试点碳市场甚至还未能达到这一基本要求,例如重庆就未更新2016年控制排放单位的企业名录。

其他碳市场如何披露数据

国际通行做法来看,交易市场信息的公开对碳交易市场至关重要,是交易机制平稳高效运行的关键。IPE一直在关注碳市场信息公开问题,我们的调研显示,中国目前的温室气体排放信息披露水平与一些市场化控排机制已经成形的国家和地区相比,亟待提高。

在首开市场排污权交易先河的美国二氧化硫交易市场中,电力行业企业SO2排放治理和交易的信息均完全向公众公开,公开排污交易计划的数据可建立人们对该计划的信心。而在国际温室气体排放交易市场上,欧盟从立法层面就做出信息公开的要求,国家和企业层面都公布了配额分配数据。

美国环保署( )则建立了在线查询的排放设施温室气体信息工

具 ( ),以交互式网站形式呈现设施的信息与数据,公众可以生成并下载自定义图表。

建立了碳交易市场的加州也开发了一个污染交互地图工具( )来展示来自大型设备的大气污染物和温室气体排放数据。

和以上这些碳交易市场相比,中国的全国碳市场在信息披露上还有很长的路要走。

中国需更进一步

中国相关政府部门也已经在为碳排放权交易信息公开做着研究和准备。除《“十三五”控制温室气体排放工作方案》外,在即将立法的《碳排放权交易管理条例(送审稿)》中,增加了“信息公开”使之成为专门的一章。在这部尚未定稿的法律中,中国要求参与碳交易的单位公布排放情况。

当前全国碳市场启动在即,我们提议相关主管部门尽快提出对碳市场相关信息披露的强制要求,从最紧迫、法规已有要求、企业已经提交的信息开始。

Tuesday, September 11, 2018

चांदी से सोना कैसे निकला आगे

हला वार्का टावर अफ्रीकी देश इथियोपिया में लगाया गया था. जब वहां कोहरे का सीज़न आया, तो इस मशीन से ख़ूब पानी इकट्ठा किया गया.
लेकिन जब बारिश या कोहरा नहीं था, तब भी हवा में नमी से पानी इकट्ठा हो रहा था.
इस टावर को स्थानीय लोगों ने बांस और दूसरी चीज़ों से मिलाकर बनाया. इसमें ताड़ की पत्तियां भी इस्तेमाल की गई थीं. अब हैती और टोगो में भी ये मशीन लगाई जा रही है. विटोरी कहते हैं कि वार्का टावर में आस-पास मिलने वाली चीज़ों से ही पानी को जमा किया जाता है.
रोलां वाल्ग्रीन कहते हैं कि ऐसी बुनियादी तकनीक उन्हीं जगहों पर कारगर होगी, जहां पर हवा में नमी ख़ूब होगी. लेकिन, दुनिया भर में पानी से महरूम 2.1 अरब लोगों तक साफ़ पानी पहुंचाना है, तो वार्का टावर इसमें ज़्यादा मददगार नहीं होगा.
वहीं विटोरी कहते हैं कि एक वार्का टावर से 50 लोगों को पानी मुहैया कराया जा सकता है. इसे तैयार करने में क़रीब 3 हज़ार डॉलर का ख़र्च आता है. बड़ा यानी 25 मीटर लंबा टावर बनाने का ख़र्च क़रीब 30 हज़ार डॉलर बैठेगा, जो 250 लोगों को पानी की सप्लाई कर सकता है. जब हवा में नमी नहीं होती, तो इस टावर के नीचे स्थित टैंक में पानी नहीं जमा होता.
इसके मुक़ाबले केमिकल स्पंज वाले डेसिकेंट और रेफ्रिजरेटर की तरह काम करने वाली मशीनों से लगातार पानी जमा होता रहता है. हां, इन्हें चलाने के लिए बिजली की ज़रूरत पड़ेगी.
वैसे तकनीक की दुनिया लगातार बदलती रहती है. कौन जाने, आगे चलकर कोई नई तकनीक ईजाद की जाए. ऐसी मशीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्री एक्सप्राइज़ इनोवेशन मुक़ाबले ने 17.5 लाख डॉलर का इनाम भी रखा है.
लोगों के ज़हन में ये सवाल भी है कि कहीं हवा से पानी सोखने से धरती के वाटर साइकिल पर तो असर नहीं पड़ेगा?
कहीं बादल बनने की प्रक्रिया पर तो असर नहीं होगा?
प्रोफ़ेसर कोडी फ्रीसेन इन सवालों को हंसी में उड़ा देते हैं. वो कहते हैं कि अगर धरती पर हर इंसान के पास हवा से पानी निकालने वाली मशीन हो, तो भी हम ट्रैफिक के धुएं में मौजूद पूरा पानी नहीं निकाल सकेंगे.
भले ही हवा से पानी सोखने के ये नुस्खे अभी अजीब लग रहे हों, मगर जिस तरह से ज़मीन के भीतर मौजूद पानी का स्तर घट रहा है, उस स्थितिमें हमें बहुत जल्द पीने के पानी के नए स्रोत की ज़रूरत होगी. ऐसे में डब्ल्यू एफ ए जैसी तकनीक में उम्मीद नज़र आती है.
हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, लेकिन वो क्या वजह रही होगी कि प्राचीन काल में सोने और चांदी को मुद्रा के रूप में चुना गया होगा?
ये महंगे ज़रूर हैं लेकिन बहुत सारी चीज़ें इनसे भी महंगी हैं. फिर इन्हें ही संपन्नता और उत्कृष्टता मापने का पैमाना क्यों माना गया?
बीबीसी इन सवालों के जवाब तलाशते हुए यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के आंद्रिया सेला के पास पहुंचा. आंद्रिया इनऑर्गेनिक केमेस्ट्री के प्रोफ़ेसर हैं.
उनके हाथ में एक पीरियॉडिक टेबल था. आंद्रिया सबसे अंत से शुरू करते हैं.किन एक परेशानी भी है कि ये नोबल गैस समूह के होते हैं. ये गैस गंधहीन और रंगहीन होती हैं, जिनकी रासायनिक प्रतिक्रिया की क्षमता कम होती है.
यही कारण है कि इन्हें मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाना आसान नहीं होता. क्योंकि इन्हें लेकर घूमना एक चुनौती होगा.
चूंकि ये रंगहीन होते हैं, इसलिए इसे पहचानना भी मुश्किल होता और ग़लती से इनका कंटेनर खुल जाए तो आपकी कमाई हवा हो जाती.
इमेज कॉपीरइट Getty Images इस श्रेणी में मरकरी और ब्रोमीन तो हैं पर वे लिक्विड स्टेट में हैं और ज़हरीले होते हैं. दरअसल सभी मेटलॉइड्स या तो बहुत मुलायम होते हैं या फिर ज़हरीले.
पीरियॉडिक टेबल गैस, लिक्विड और ज़हरीले रासायनिक तत्वों के बिना कुछ ऐसा दिखेगा.
ऊपर के टेबल में सभी नॉन-मेटल तत्व भी ग़ायब हैं, जो गैस और लिक्विड तत्व के आसपास थे. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन नॉन-मेटल को न तो फैलाया जा सकता है और न ही सिक्के का रूप दिया जा सकता है.
ये दूसरे मेटल के मुक़ाबले मुलायम भी नहीं होते हैं, इसलिए ये मुद्रा बनने की दौड़ में पीछे रह गए.
सेला ने अब हमारा ध्यान पीरियोडिक टेबल की बाईं ओर खींचा. ये सभी रासायनिक तत्व ऑरेंज कलर के घेरे में थे.
ये सभी मेटल हैं. इन्हें मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है पर परेशानी यह है कि इनकी रासायनिक प्रतिक्रिया क्षमता बहुत ज़्यादा होती है.
लिथियम जैसे मेटल इतने प्रतिक्रियाशील होते हैं कि जैसे ही ये हवा के संपर्क मे आते हैं, आग लग जाती है. अन्य दूसरे खुरदरे और आसानी से नष्ट होने वाले हैं.
इसलिए ये ऐसे नहीं हैं, जिसे आप अपनी जेबों में लेकर घूम सकें.
इसके आसपास के रासायनिक तत्व प्रतिक्रियाशील होने की वजह से इसे मुद्रा बनाया जाना मुश्किल है. वहीं, एल्कलाइन यानी क्षारीय तत्व आसानी से कहीं भी पाए जा सकते हैं.
अगर इसे मुद्रा बनाया जाए तो कोई भी इसे तैयार कर सकता है. अब बात करें पीरियॉडिक टेबल के रेडियोएक्टिव तत्वों की तो इन्हें रखने पर नुक़सान हो सकता है.
ऊपर की तस्वीर में बचे रासायनिक तत्वों की बात करें तो ये रखने के हिसाब से सुरक्षित तो हैं लेकिन ये इतनी मात्रा में पाए जाते हैं कि इसका सिक्का बनाना आसान हो जाएगा, जैसे कि लोहे के सिक्के.
मुद्रा के रूप में उस रासायनिक तत्व का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जो आसानी से नहीं मिलते हों.
अब अंत में पांच तत्व बचते हैं जो बहुत मुश्किल से मिलते हैं. सोना(Au), चांदी( ), प्लैटिनम(Pt), रोडियम(Rh) और पलेडियम(Pd).
ये सभी तत्व क़ीमती होते हैं. इन सभी में रोडियम और प्लेडियम को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन इनकी खोज उन्नीसवीं शताब्दी में की गई थी, जिसकी वजह से प्राचीन काल में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया था.
तब प्लैटिनम का इस्तेमाल किया जाता था पर लेकिन इसे गलाने में तापमान को 1768 डिग्री तक ले जाना होता है. इस वजह से मुद्रा की लड़ाई में सोने और चांदी की जीत हुई.
चांदी का इस्तेमाल सिक्के के रूप में तो हुआ पर परेशानी यह थी कि ये हवा में मौजूद सल्फर से प्रतिक्रिया कर कुछ काली पड़ जाती है.
चांदी की तुलना में सोना आसानी से नहीं मिलता है और यह काला भी नहीं पड़ता.
सोना ऐसा तत्व है जो आर्द्र हवा में हरा नहीं होती है. सेला कहते हैं कि यही वजह है मुद्रा की दौड़ में सोना सबसे आगे और अव्वल रहा.
वो कहते हैं कि यही वजह है कि हज़ारों सालों के प्रयोग और कई सभ्यताओं ने सोने को मुद्रा के रूप में चुना.

Thursday, September 6, 2018

2+2 वार्ता: सुषमा ने कहा- बातचीत से भारत-अमेरिका के रिश्ते मजबूत होंगे, पॉम्पियो बोले- दोनों दे

ई दिल्ली.   भारत-अमेरिका के बीच पहली 2+2 वार्ता गुरुवार को हुई। बातचीत में भारत की तरफ से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण शामिल हुईं। अमेरिका की तरफ से माइक पॉम्पियो और जेम्स मैटिस ने हिस्सा लिया। सुषमा ने कहा कि इस बातचीत से दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दोनों देशों के भविष्य के रिश्तों के दिशा-निर्देश तय कर चुके हैं।
माइक पॉम्पियो ने कहा कि हमें समुद्र, आकाश में आने-जाने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही सामुद्रिक विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से हल ढूंढा जाना चाहिए। दोनों देश एक-दूसरे की बाजार आधारित अर्थव्यवस्था और गुड गवर्नेंस को आगे बढ़ाएंगे। अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली बाहरी ताकतों से रक्षा की जाएगी। दोनों देश लोकतंत्र, व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान और आजादी दिए जाने में भरोसा रखते हैं। भारत पहुंचने से पहले पोम्पियो ने कहा- वार्ता में भारत और रूस मिसाइल सौदे और ईरान से तेल आयात करने पर बातचीत हो सकती है, लेकिन इस पर जोर नहीं रहेगा।
अमेरिका-भारत की बैठक साल में दो बार होना तय :  जून 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच व्हाइट हाउस में मुलाकात हुई थी। तब तय किया था कि द्विपक्षीय सहयोग के तहत रक्षा तकनीक और व्यापारिक पहल के मुद्दों पर बात करने के लिए दोनों देश हर साल दो बार बैठक करेंगे। इसके तहत पहली 2+2 वार्ता 6 सितंबर को हो रही है। इससे पहले अप्रैल और जुलाई में यह वार्ता टाल दी गई थी।
ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद दो बड़े रक्षा समझौते
जून 2018 : अमेरिका ने भारत को छह अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर (एएच-64ई) बेचने की मंजूरी दी। इनकी कीमत करीब 6340 करोड़ रुपए है। यह हेलीकॉप्टर अपने आगे लगे सेंसर की मदद से रात में उड़ान भर सकता है।
मार्च 2018 : भारत ने अमेरिका से 20 साल तक एलएनजी खरीदने का समझौता किया। पहले चरण में 90 लाख टन एलएनजी खरीदी जाएगी। इससे देश की अर्थव्यवस्था को गैस आधारित बनाने में मदद मिलेगी।शिंगटन. पाकिस्तान तेजी से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। अभी उसके पास 140 से 150 परमाणु हथियार और भंडार हैं।  2025 तक यह आकंड़ा 220 से 250 तक पहुंचने का अनुमान है। इस तरह वह दुनिया में इस मामले में पांचवीं बड़ी ताकत बन सकता है। अमेरिका की रक्षा खुफिया एजेंसी फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (एफएएस) की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
इस रिपोर्ट पर काम करने वाले हंस एम क्रिस्टनसेन, रॉबर्ट एस नोरिस और जुलिया डायमंड ने कहा कि करीब 10 साल में पाकिस्तान 350 परमाणु हथियारों के साथ दुनिया में तीसरी बड़ी एटमी ताकत बन सकता है।
इसलिए भरोसेमंद हैं यह रिपोर्ट : यह रिपोर्ट सालाना जारी होती है। इस पर भरोसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इसमें उन तमाम स्रोतों का भी आकलन किया जाता है जिसके आधार पर अनुमान लगाया गया। इसमें पाकिस्तान के सैन्य अड्डों और एयरफोर्स के ठिकानों के अध्ययन के आधार पर कहा गया है कि वहां लगातार परमाणु हथियारों का भंडार बढ़ाने की तैयारियां चल रही हैं।
कम दूरी की मिसाइलें बना रहा पाक : रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों से लैस कम दूरी की मिसाइलों के विकास पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि वह सिर्फ भारत के साथ परमाणु युद्ध की तैयारी कर रहा है। दिल्ली.   आर्मी चीफ बिपिन रावत ने कहा है कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद बंद कर दे तो हम (भारत) भी नीरज चोपड़ा जैसे बन जाएंगे। हाल ही में इंडोनेशिया में हुए एशियाई खेलों में नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था। वहीं, चीन के किझेन लियू को सिल्वर और पाकिस्तान के अरशद नदीम को कांस्य पदक मिला था। पोडियम पर नीरज ने अशरद और लियू से हाथ मिलाया था। अरशद से हाथ मिलाने की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। श्मीर में कार्रवाई कर रही सेना : रावत ने कहा कि जिस तरह से मीडिया में आतंकवाद बढ़ने के आंकड़े आते हैं, मैं इससे सहमत नहीं हूं। अगर कश्मीर में स्थानीय युवा हथियार उठा रहे हैं, उन्हें सुरक्षाबल या तो मार गिरा रहे हैं या उन्हें  गिरफ्तार कर लिया जाता है या वे आत्मसमर्पण कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सेना इस तरह की कार्रवाई लगातार करेगी लेकिन मैं ये भी विश्वास के साथ कह सकता हूं कि युवाओं द्वारा चुना गया यह रास्ता (आतंकवाद का) सही नहीं है। मैं कई बार देख चुका हूं कि मां ने अपने बेटे से लौटने की अपील की। अगर हमारी कार्रवाई जारी रही तो हम आतंकवाद की समस्या को हल कर देंगे। धीरे-धीरे आतंक की ओर मुड़े युवा भी अपने घर लौट आएंगे।