हला वार्का टावर अफ्रीकी देश इथियोपिया में लगाया गया था. जब वहां कोहरे का सीज़न आया, तो इस मशीन से ख़ूब पानी इकट्ठा किया गया.
लेकिन जब बारिश या कोहरा नहीं था, तब भी हवा में नमी से पानी इकट्ठा हो रहा था.
इस
टावर को स्थानीय लोगों ने बांस और दूसरी चीज़ों से मिलाकर बनाया. इसमें ताड़ की पत्तियां भी इस्तेमाल की गई थीं. अब हैती और टोगो में भी ये मशीन
लगाई जा रही है. विटोरी कहते हैं कि वार्का टावर में आस-पास मिलने वाली
चीज़ों से ही पानी को जमा किया जाता है.
रोलां वाल्ग्रीन कहते हैं कि
ऐसी बुनियादी तकनीक उन्हीं जगहों पर कारगर होगी, जहां पर हवा में नमी ख़ूब
होगी. लेकिन, दुनिया भर में पानी से महरूम 2.1 अरब लोगों तक साफ़ पानी
पहुंचाना है, तो वार्का टावर इसमें ज़्यादा मददगार नहीं होगा.
वहीं
विटोरी कहते हैं कि एक वार्का टावर से 50 लोगों को पानी मुहैया कराया जा
सकता है. इसे तैयार करने में क़रीब 3 हज़ार डॉलर का ख़र्च आता है. बड़ा
यानी 25 मीटर लंबा टावर बनाने का ख़र्च क़रीब 30 हज़ार डॉलर बैठेगा, जो 250
लोगों को पानी की सप्लाई कर सकता है. जब हवा में नमी नहीं होती, तो इस
टावर के नीचे स्थित टैंक में पानी नहीं जमा होता.
इसके मुक़ाबले केमिकल स्पंज वाले डेसिकेंट और रेफ्रिजरेटर की तरह काम
करने वाली मशीनों से लगातार पानी जमा होता रहता है. हां, इन्हें चलाने के
लिए बिजली की ज़रूरत पड़ेगी.
वैसे तकनीक की दुनिया लगातार बदलती रहती है. कौन जाने, आगे चलकर कोई नई
तकनीक ईजाद की जाए. ऐसी मशीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्री एक्सप्राइज़
इनोवेशन मुक़ाबले ने 17.5 लाख डॉलर का इनाम भी रखा है.
लोगों के ज़हन में ये सवाल भी है कि कहीं हवा से पानी सोखने से धरती के वाटर साइकिल पर तो असर नहीं पड़ेगा?
कहीं बादल बनने की प्रक्रिया पर तो असर नहीं होगा?
प्रोफ़ेसर
कोडी फ्रीसेन इन सवालों को हंसी में उड़ा देते हैं. वो कहते हैं कि अगर
धरती पर हर इंसान के पास हवा से पानी निकालने वाली मशीन हो, तो भी हम
ट्रैफिक के धुएं में मौजूद पूरा पानी नहीं निकाल सकेंगे.
भले ही हवा
से पानी सोखने के ये नुस्खे अभी अजीब लग रहे हों, मगर जिस तरह से ज़मीन के
भीतर मौजूद पानी का स्तर घट रहा है, उस स्थितिमें हमें बहुत जल्द पीने के
पानी के नए स्रोत की ज़रूरत होगी. ऐसे में डब्ल्यू एफ ए जैसी तकनीक में
उम्मीद नज़र आती है.
हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती,
लेकिन वो क्या वजह रही होगी कि प्राचीन काल में सोने और चांदी को मुद्रा के
रूप में चुना गया होगा?
ये महंगे ज़रूर हैं लेकिन बहुत सारी चीज़ें
इनसे भी महंगी हैं. फिर इन्हें ही संपन्नता और उत्कृष्टता मापने का पैमाना
क्यों माना गया?
बीबीसी इन सवालों के जवाब तलाशते हुए यूनिवर्सिटी
कॉलेज लंदन के आंद्रिया सेला के पास पहुंचा. आंद्रिया इनऑर्गेनिक
केमेस्ट्री के प्रोफ़ेसर हैं.
उनके हाथ में एक पीरियॉडिक टेबल था. आंद्रिया सबसे अंत से शुरू करते हैं.किन एक परेशानी भी है कि ये नोबल गैस समूह के होते हैं. ये गैस गंधहीन
और रंगहीन होती हैं, जिनकी रासायनिक प्रतिक्रिया की क्षमता कम होती है.
यही कारण है कि इन्हें मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाना आसान नहीं होता. क्योंकि इन्हें लेकर घूमना एक चुनौती होगा.
चूंकि ये रंगहीन होते हैं, इसलिए इसे पहचानना भी मुश्किल होता और ग़लती से इनका कंटेनर खुल जाए तो आपकी कमाई हवा हो जाती. इमेज कॉपीरइटGetty Imagesइस श्रेणी में मरकरी और ब्रोमीन तो हैं पर वे लिक्विड स्टेट में हैं और
ज़हरीले होते हैं. दरअसल सभी मेटलॉइड्स या तो बहुत मुलायम होते हैं या फिर
ज़हरीले.
पीरियॉडिक टेबल गैस, लिक्विड और ज़हरीले रासायनिक तत्वों के बिना कुछ ऐसा दिखेगा.
ऊपर के टेबल में सभी नॉन-मेटल तत्व भी ग़ायब हैं, जो गैस और लिक्विड
तत्व के आसपास थे. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन नॉन-मेटल को न तो फैलाया जा
सकता है और न ही सिक्के का रूप दिया जा सकता है.
ये दूसरे मेटल के मुक़ाबले मुलायम भी नहीं होते हैं, इसलिए ये मुद्रा बनने की दौड़ में पीछे रह गए.
सेला ने अब हमारा ध्यान पीरियोडिक टेबल की बाईं ओर खींचा. ये सभी रासायनिक तत्व ऑरेंज कलर के घेरे में थे.
ये
सभी मेटल हैं. इन्हें मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है पर
परेशानी यह है कि इनकी रासायनिक प्रतिक्रिया क्षमता बहुत ज़्यादा होती है.
लिथियम
जैसे मेटल इतने प्रतिक्रियाशील होते हैं कि जैसे ही ये हवा के संपर्क मे
आते हैं, आग लग जाती है. अन्य दूसरे खुरदरे और आसानी से नष्ट होने वाले
हैं.
इसलिए ये ऐसे नहीं हैं, जिसे आप अपनी जेबों में लेकर घूम सकें.
इसके आसपास के रासायनिक तत्व प्रतिक्रियाशील होने की वजह से इसे मुद्रा
बनाया जाना मुश्किल है. वहीं, एल्कलाइन यानी क्षारीय तत्व आसानी से कहीं भी
पाए जा सकते हैं.
अगर इसे मुद्रा बनाया जाए तो कोई भी इसे तैयार कर
सकता है. अब बात करें पीरियॉडिक टेबल के रेडियोएक्टिव तत्वों की तो इन्हें
रखने पर नुक़सान हो सकता है.
ऊपर की तस्वीर में बचे रासायनिक तत्वों की बात करें तो ये रखने के हिसाब
से सुरक्षित तो हैं लेकिन ये इतनी मात्रा में पाए जाते हैं कि इसका सिक्का
बनाना आसान हो जाएगा, जैसे कि लोहे के सिक्के.
मुद्रा के रूप में उस रासायनिक तत्व का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जो आसानी से नहीं मिलते हों.
अब अंत में पांच तत्व बचते हैं जो बहुत मुश्किल से मिलते हैं. सोना(Au), चांदी( ), प्लैटिनम(Pt), रोडियम(Rh) और पलेडियम(Pd).
ये
सभी तत्व क़ीमती होते हैं. इन सभी में रोडियम और प्लेडियम को मुद्रा के
रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन इनकी खोज उन्नीसवीं शताब्दी में की
गई थी, जिसकी वजह से प्राचीन काल में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया था.
तब
प्लैटिनम का इस्तेमाल किया जाता था पर लेकिन इसे गलाने में तापमान को 1768
डिग्री तक ले जाना होता है. इस वजह से मुद्रा की लड़ाई में सोने और चांदी
की जीत हुई.
चांदी का इस्तेमाल सिक्के के रूप में तो हुआ पर परेशानी यह थी कि ये हवा में मौजूद सल्फर से प्रतिक्रिया कर कुछ काली पड़ जाती है.
चांदी की तुलना में सोना आसानी से नहीं मिलता है और यह काला भी नहीं पड़ता.
सोना ऐसा तत्व है जो आर्द्र हवा में हरा नहीं होती है. सेला कहते हैं कि यही वजह है मुद्रा की दौड़ में सोना सबसे आगे और अव्वल रहा.
वो कहते हैं कि यही वजह है कि हज़ारों सालों के प्रयोग और कई सभ्यताओं ने सोने को मुद्रा के रूप में चुना.
ई दिल्ली. भारत-अमेरिका के बीच पहली 2+2 वार्ता गुरुवार को
हुई। बातचीत में भारत की तरफ से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री
निर्मला सीतारमण शामिल हुईं। अमेरिका की तरफ से माइक पॉम्पियो और जेम्स
मैटिस ने हिस्सा लिया। सुषमा ने कहा कि इस बातचीत से दोनों देशों के रिश्ते
और मजबूत होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दोनों देशों के भविष्य के रिश्तों के दिशा-निर्देश तय कर चुके हैं।
माइक पॉम्पियो ने कहा कि हमें समुद्र, आकाश में आने-जाने की स्वतंत्रता
सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही सामुद्रिक विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से हल
ढूंढा जाना चाहिए। दोनों देश एक-दूसरे की बाजार आधारित अर्थव्यवस्था और
गुड गवर्नेंस को आगे बढ़ाएंगे। अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली बाहरी
ताकतों से रक्षा की जाएगी। दोनों देश लोकतंत्र, व्यक्तिगत अधिकारों का
सम्मान और आजादी दिए जाने में भरोसा रखते हैं। भारत पहुंचने से पहले
पोम्पियो ने कहा- वार्ता में भारत और रूस मिसाइल सौदे और ईरान से तेल आयात
करने पर बातचीत हो सकती है, लेकिन इस पर जोर नहीं रहेगा। अमेरिका-भारत की बैठक साल में दो बार होना तय : जून 2017 में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच
व्हाइट हाउस में मुलाकात हुई थी। तब तय किया था कि द्विपक्षीय सहयोग के तहत
रक्षा तकनीक और व्यापारिक पहल के मुद्दों पर बात करने के लिए दोनों देश हर
साल दो बार बैठक करेंगे। इसके तहत पहली 2+2 वार्ता 6 सितंबर को हो रही है।
इससे पहले अप्रैल और जुलाई में यह वार्ता टाल दी गई थी। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद दो बड़े रक्षा समझौते जून 2018 : अमेरिका ने भारत को छह अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर
(एएच-64ई) बेचने की मंजूरी दी। इनकी कीमत करीब 6340 करोड़ रुपए है। यह
हेलीकॉप्टर अपने आगे लगे सेंसर की मदद से रात में उड़ान भर सकता है। मार्च 2018 : भारत ने अमेरिका से 20 साल तक एलएनजी खरीदने का
समझौता किया। पहले चरण में 90 लाख टन एलएनजी खरीदी जाएगी। इससे देश की
अर्थव्यवस्था को गैस आधारित बनाने में मदद मिलेगी।शिंगटन. पाकिस्तान तेजी से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। अभी
उसके पास 140 से 150 परमाणु हथियार और भंडार हैं। 2025 तक यह आकंड़ा 220
से 250 तक पहुंचने का अनुमान है। इस तरह वह दुनिया में इस
मामले में पांचवीं बड़ी ताकत बन सकता है। अमेरिका की रक्षा खुफिया एजेंसी
फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (एफएएस) की रिपोर्ट में यह दावा किया गया
है।
इस रिपोर्ट पर काम करने वाले हंस एम क्रिस्टनसेन, रॉबर्ट एस नोरिस और
जुलिया डायमंड ने कहा कि करीब 10 साल में पाकिस्तान 350 परमाणु हथियारों के
साथ दुनिया में तीसरी बड़ी एटमी ताकत बन सकता है। इसलिए भरोसेमंद हैं यह रिपोर्ट : यह रिपोर्ट सालाना जारी होती
है। इस पर भरोसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इसमें उन तमाम स्रोतों का भी
आकलन किया जाता है जिसके आधार पर अनुमान लगाया गया। इसमें पाकिस्तान के
सैन्य अड्डों और एयरफोर्स के ठिकानों के अध्ययन के आधार पर कहा गया है कि
वहां लगातार परमाणु हथियारों का भंडार बढ़ाने की तैयारियां चल रही हैं। कम दूरी की मिसाइलें बना रहा पाक : रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि
पाकिस्तान परमाणु हथियारों से लैस कम दूरी की मिसाइलों के विकास पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि वह सिर्फ भारत के साथ परमाणु
युद्ध की तैयारी कर रहा है। दिल्ली. आर्मी चीफ बिपिन रावत ने कहा है कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद
बंद कर दे तो हम (भारत) भी नीरज चोपड़ा जैसे बन जाएंगे। हाल ही में
इंडोनेशिया में हुए एशियाई खेलों में नीरज चोपड़ा ने जेवलिन
थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था। वहीं, चीन के किझेन लियू को सिल्वर और
पाकिस्तान के अरशद नदीम को कांस्य पदक मिला था। पोडियम पर नीरज ने अशरद और
लियू से हाथ मिलाया था। अरशद से हाथ मिलाने की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल
हुई थी। श्मीर में कार्रवाई कर रही सेना : रावत ने कहा कि जिस तरह से मीडिया
में आतंकवाद बढ़ने के आंकड़े आते हैं, मैं इससे सहमत नहीं हूं। अगर कश्मीर
में स्थानीय युवा हथियार उठा रहे हैं, उन्हें सुरक्षाबल या तो मार गिरा
रहे हैं या उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है या वे आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सेना इस तरह की कार्रवाई लगातार करेगी लेकिन मैं ये
भी विश्वास के साथ कह सकता हूं कि युवाओं द्वारा चुना गया यह रास्ता
(आतंकवाद का) सही नहीं है। मैं कई बार देख चुका हूं कि मां ने अपने बेटे से
लौटने की अपील की। अगर हमारी कार्रवाई जारी रही तो हम आतंकवाद की समस्या
को हल कर देंगे। धीरे-धीरे आतंक की ओर मुड़े युवा भी अपने घर लौट आएंगे।
वरिष्ठ पत्रकार और द हिंदू के पब्लिशर
एन. राम से बीबीसी संवाददाता विवेक आनंद ने करुणानिधि की राजनीति, शासन,
सामाजिक पक्ष, मीडिया से संबंध, विपक्षी राजनेताओं के साथ संबंध, श्रीलंकाई
तमिलों के लेकर उनके विचार समेत कई मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की.
सामाजिक
न्याय करुणानिधि का आदर्श था. वो 80 वर्षों से भी अधिक समय तक सामाजिक
न्याय के समर्थन में सक्रिय थे. सीएन अन्नादुरई के निधन के बाद वे डीएमके
के प्रमुख बने और अपनी मौत तक करीब 50 वर्षों तक इस पद पर बने रहे.
जयललिता
को एक बार विधानसभा चुनाव भी हार का सामना भी करना पड़ा लेकिन करुणानिधि
13 बार विधानसभा के लिए मैदान में उतरे और एक बार भी नहीं हारे. चाहे सत्ता
में हों या ना हों वो हमेशा सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित रहे.
हालांकि
उन्होंने ब्राह्मण विरोधी आंदोलन से अपनी पहचान बनाई लेकिन ब्राह्मणों के
प्रति पूर्वाग्रह रखकर कभी भेदभाव नहीं किया. मैं उन्हें एक बुर्जुग दोस्त
के तौर पर व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. उन्होंने ब्राह्मणों का केवल
वैचारिक विरोध किया लेकिन उन्होंने किसी भी सामाजिक वर्ग के प्रति
पूर्वाग्रह नहीं किया.
वो नास्तिक और तर्कवादी थे. यह उन्होंने कभी
जनता से छुपाया नहीं. लेकिन उन्होंने कभी किसी खास धर्म को निशाना नहीं
बनाया, अल्पसंख्यकों को लगातार उनका समर्थन मिलता रहा.
समाज कल्याण योजनाओं को लागू करने में तमिलनाडु हमेशा ही देश के शीर्ष
दो राज्यों में से एक रहा. इसके मूल कारक भी करुणानिधि ही थे. एमजी
रामाचंद्रन और जयललिता के शासन काल में एआईएडीएमके भी इसका हिस्सा रही.
मतभेदों
के बावजूद डीएमके और एआईएडीएमके कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में एक
दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती थीं. इस मुद्दे पर दोनों ही पार्टियों में
हमेशा ही एक होड़ रही.
करुणानिधि ने अपने शासनकाल के दौरान तमिलनाडु
स्लम क्लीयरेंस बोर्ड बनाया, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मज़बूत किया और
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर अपना ध्यान केंद्रित किया. सार्वजनिक जीवन
में उन्हें कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लेकिन उनमें किसी भी परिस्थिति
से अपनी स्थिति को सुधारने की क्षमता थी.
करुणानिधि तक हमेशा ही आसानी से पहुंचा जा सकता था. वो एमजीआर और
जयललिता से इस मामले में अलग थे. अगर आप किसी निश्चित समय पर पार्टी दफ़्तर
में जाते तो यह तय है कि वो वहां मिलेंगे. मैंने बिना मिले कई बार उनसे
फ़ोन पर बातें की हैं.
कभी कभी वो भी मुझे सुबह सुबह फ़ोन करते. वो स्वभाव के बेहद सच्चे थे, जो हमें आज के कई नेताओं में देखने को नहीं मिलता.
शासन
के मामले में, वो अपने निर्णयों के बेहद पक्के थे. नौकरशाह के लोग उनके
साथ काम करने के लिए बहुत उत्सुक रहते थे. किसी मामले में हां या ना कहने
को लेकर उनकी सोच एकदम साफ़ थी.
इसके बावजूद कि करुणानिधि और जयललिता
के बीच एक प्रतिद्वंद्विता थी, एमजीआर उनका बराबर सम्मान करते थे. एक बार
एमजीआर के एक सहयोगी ने बातचीत के दौरान बिना कलाइग्नर बोले करुणानिधि के
नाम का ज़िक्र किया तो एमजीआर ने उसे डांटा और साथ ही कार से उतार दिया.
एमजीआर के मौत की ख़बर सुन कर करुणानिधि भी वहां सबसे पहले पहुंचने वालों
में से थे.
पिछले कुछ वर्षों को छोड़ दें तो मीडिया के लिए लिखना, फिल्म स्क्रिप्ट,
कविताएं लिखना उनकी आदत में शुमार रहा है. किसी भी अन्य राजनेता के पास
उनकी तरह लेखन क्षमता नहीं थी. उल्लेखनीय है कि उन्होंने स्कूल की पढ़ाई
बीच में ही छोड़ दी थी, इसके बावजूद उनमें उत्कृष्ट लेखन प्रतिभा थी.
वो
पार्टी के मुखपत्र मुरासोली के एडिटर थे. ग़लतियां पसंद नहीं थीं. तमिल
भाषा के प्रति उन्हें बेहद प्यार था. केंद्र की जबरन हिंदी को थोपने का
उन्होंने विरोध किया लेकिन वो कभी भी हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं थे. भाषा को
लेकर वो कट्टर नहीं थे.
पत्रकारों के साथ उनके तालमेल अच्छे थे. जब
भी हम सरकार की आलोचना करते तो वो हमें अपनी सफ़ाई देने के लिए बुलाते.
करुणानिधि ने कभी आगे बढ़ने के लिए ग़लत चाल नहीं चले. वो कभी लिखने और
पत्रकारिता से अलग नहीं हुए.
लोकतंत्र में उनका अगाढ़ विश्वास था.
शासन में रहने के बावजूद आप उनकी आलोचना कर सकते थे. उन्होंने जयललिता की
तरह मीडिया पर 200 मानहानि के मामले कभी दर्ज नहीं करवाए. वो बेहद सहिष्णु
थे.में कांग्रेस के विभाजन के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार बगैर डीएमके के
समर्थन के बच नहीं सकती थी. राष्ट्रीय राजनीति में उनकी साझेदारी ने हमेशा
ही अहम भूमिका निभाई.
जब आपातकाल घोषित किया गया तो डीएमके एकमात्र
ऐसी सत्ताधारी पार्टी थी जिसने इसका विरोध किया. इसके बदले में सरकार को
बर्ख़ास्त कर दिया गया. वो सत्ता बनाए रखने के लिए इंदिरा के साथ जा सकते
थे लेकिन वो लोकतंत्र में विश्वास रखते थे इसलिए एक मज़बूत रुख अख्तियार
किया. इस दौरान डीएमके के कई नेताओं को गिरफ़्तार किया गया. उनके बेटे
स्टालिन को जेल में पीटा गया.
समय के साथ डीएमके केंद्र में एनडीए
का हिस्सा बन गई. लेकिन उनकी सोच केंद्र की सरकार में शामिल होने की थी.
यहां ये देखना ज़रूरी है कि राजीव गांधी जिस तरह से इंदिरा गांधी की हत्या
के बाद अचानक राजनीति में आ गए थे, उस तरह से स्टालिन ने राजनीति में क़दम
नहीं रखा.
हालांकि राजनीति में कुछ अभिनेताओं को प्रवेश करने की
चर्चाएं हैं लेकिन मुझे लगता है कि द्रविड़ पार्टियों प्रभुत्व बना रहेगा.
हाल ही में एक ओपिनियन पोल के मुताबिक यदि अभी चुनाव हुए तो डीएमके जीत
जाएगी क्योंकि जयललिता के बाद एआईएडीएमके कमज़ोर हो गई है. एक संगठन के तौर
पर डीएमके आज मज़बूत है.
लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम या लिट्टे (एलटीटीई) हमेशा ही करुणानिधि
की बजाय एमजीआर सरकार के चाहने वाले थे. तमिल ईलम लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन
(टीईएलओ) के नेता सीरी सबराथिनम की हत्या के बाद करुणानिधि का एलटीटीई के
प्रति सम्मान ख़त्म हो गया.
एक बार करुणानिधि ने मुझसे बातचीत के
दौरान कहा कि राजीव गांधी की हत्या एक अक्षम्य ग़लती थी. यहां तक कि
श्रीलंकाई गृहयुद्ध के अंतिम चरणों के दौरान भी करुणानिधि ने वो सब करने की
कोशिश की जो वो कर सकते थे. इसके बावजूद उन्होंने एलटीटीई का सीधे समर्थन
नहीं किया.
मैंने उनसे श्रीलंकाई मुद्दे पर कई बार बात की है. हालांकि उनका कहना था कि वो तमिल ईलम के अलग राष्ट्र का समर्थन करते हैं,
उनका स्टैंड था कि तमिलों को अपने राजनीतिक अधिकार और श्रीलंकाई संवैधानिक
ढांचे के भीतर अपने जीवन को परिभाषित करने की क्षमता प्राप्त करनी चाहिए.
वो
चाहते थे कि ईलम एक अलग राष्ट्र तभी बने जब उपरोक्त चीज़ें ना हो सके. अलग
ईलम राष्ट्र को लेकर उनका हठ उतना नहीं था जितना कि दूसरों का. वो एलटीटीई
की ज़्यादतियों के समर्थन में नहीं थे.
एक बार राजीव गांधी की हत्या
के बारे में उनसे बात करते हुए मैंने किसी की कही बात का ज़िक्र किया कि
'एक मूर्खतापूर्ण ग़लती अपराध से भी बदतर है.' पहला, एलटीटीई भारतीय शांति
सेना के साथ भयंकर लड़ाई में लगी है. दूसरा, प्रभाकरन खुद राजीव गांधी को
मारने की योजना बनाता है. तीसरा, महिंदा राजपक्षे का चुनाव है.
пятницу, 18 мая, канцлер Германии Ангела Меркель посетит Сочи, где встретится с российским президентом Владимиром Путиным. В повестке переговоров вопросы политического и экономического сотрудничества, глобальные и региональные проблемы, интересующие Берлин и Москву. По мнению экспертов, у лидеров двух стран широкий спектр тем для обсуждения: от «Северного потока — 2» до ситуации в Сирии. Об основных вопросах сочинского саммита — в материале RT.
В пятницу, 18 мая, в Сочи с рабочим визитом прибывает канцлер Германии Ангела Меркель. Цель приезда — переговоры с российским президентом Владимиром Путиным. Глава ФРГ — первый лидер страны ЕС, который посетит Россию и пообщается с Путиным после его инаугурации. Как отметил в интервью RT директор Фонда прогрессивной политики Олег Бондаренко, визит Меркель носит знаковый характер, так как речь идёт о главе ведущей державы Европы.
Эта встреча в первую очередь будет посвящена обсуждению экономических аспектов сотрудничества на фоне усиления санкций, где главным является строительство «Северного потока — 2», — продолжил он.
3 мая началось строительство немецкого участка газопровода. Эксперт отметил, что в этом проекте заинтересованы как Берлин, так и Москва.
«Россия получает независимость от Украины как крайне ненадёжного транзитёра газа, а Германия тем самым становится европейским газовым центром», — добавил Бондаренко.
на переговорах Альтмайера с главой Министерства энергетики России Александром Новаком стороны договорились, что «большая часть российского природного газа потечёт в Западную Европу по обеим веткам трубопровода «Северный поток», однако частично сохранится и транзит через Украину. Ранее на этом настаивала лично Меркель.
«Если украинцам будут даны какие-то гарантии, сделано это будет для того, чтобы не тормозить строительство «Северного потока — 2», — прокомментировала RT позицию Берлина заместитель руководителя Центра германских исследований Института Европы РАН Екатерина Тимошенкова. — Германия здесь заинтересованная сторона».